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संस्कृति को संजोए है सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश जहां देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात है तो वहीं यहांका प्राकृतिक सौंदर्य, शद्घ व शांत वातावरण तथा बर्फ से ढक़े पहाड़बर्बस ही देशी व विदेशी पर्यटकों को अपनी आेर आकर्षित करते है।इतना ही नहीं प्रदेश की देव संस्कृति के साथ-साथ यहां की लोककलाएं व सामाजिक परम्पराएं आज भी देखने को मिल जाती है।जिन्हे हम न केवल मेलों, तीज-त्योहारों, विवाह उत्सवों व धार्मिकअनुष्ठानों के वक्त देख सकते हैं बल्कि हमारा खान-पान, वेशभूषा वरहन सहन में भी यह साफ झलकती है। आज भले ही बदलती दुनियाके साथ-साथ आधुनिकता का प्रभाव हमारी संस्कृति पर पड़ा हो परन्तुफिर भी प्रदेश में ऐसे अनेकों क्षेत्र हैं जहां लोगों ने अपनी पुरातनविरासत संस्कृति को संजोकर रखा है। एेसे में यदि सिरमौर जिला केगिरिपार क्षेत्र की बात करें तो हमें यहां की पुरातन संस्कृति, लोककलाएं व सामाजिक परम्पराएं आज भी देखने को मिल जाती है।
सिरमौर जिला का यह गिरिपार क्षेत्र लगभग 1300 वर्ग कि0 मी0 केक्षेत्र में फैला है जो जिला के कुल क्षेत्रफल का लगभग 45 फीसदी हैजबकि यहां की आबादी लगभग पौने तीन लाख के आसपास है जोजिला की कुल आबादी का लगभग 50 फीसदी है। इस गिरिपार क्षेत्र मेंतीन तहसीलें संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई तथा तीन ही उप तहसीलेंरोनहाट, नौहराधार व कमरऊ शामिल है। इस क्षेत्र में निवास करनेवाले लोगों को हाटी समुदाय के नाम से भी पुकारा जाता है। प्राप्तजानकारी के अनुसार किसी समय इस इलाके के लोग अपने खेतों सेहोने वाली पैदावार को पीठ पर ढ़ोकर आसपास के इलाकों में अस्थाईमंडी (हाट) लगाकर बेचते थे, जिसके कारण ये हाटी कहलाए।जानकारों के अनुसार सन 1833 से पहले यहां का गिरिपार औरउतराखण्ड़ का जौनसार क्षेत्र भी सिरमौर रियासत का ही हिस्सा थे।गिरिपार के निवासी हाटी व जौनसार के लोग जौनसारा कहलाते थे।परन्तु अंग्रेजी हुकूमत ने जौनसार क्षेत्र को अपने नियन्त्रण में लेकरयूनाइटेड़ प्रोविंसज में शामिल कर लिया जो आजादी के बाद उतरप्रदेश और अब उतराखण्ड़ के नाम से अलग राज्य कहलाया। आजभले ही ये दोनों समुदाय अलग-2 राज्य में हो, परन्तु गिरिपार के हाटीऔर जौनसारा एक ही पूर्वज के वंशज माने जाते हैं। आज भी दोनोंइलाकों के लोगों की संस्कृति, सामाजिक परम्पराएं, रहन सहन औरतीज त्योहार एक जैसे ही हैं। लेकिन वर्ष 1967 में जौनसार क्षेत्रअनुसूचित जनजाति घोषित हो गया, परन्तु यहां का गिरिपार वंचितरह गया जिसको लेकर समय-2 पर आज भी इस क्षेत्र के लोगविभिन्न मंचों के माध्यम से मांग करते आ रहे है।
खैर गिरिपार क्षेत्र की कठिन भोगौलिक परिस्थितियां व कमजोरआर्थिक स्थिति से लोगों का जीवन कठिन दौर से गुजरा हो, परन्तुक्षेत्र के वाशिंदों की कड़ी मेहनत, अपनी संस्कृति व जमीन से विषेशजुड़ाव के चलते ही जहां यह क्षेत्र भी तरक्की की दिशा में अग्रसर हुआहै तो वहीं अपनी प्राचीन संस्कृति को संजोकर रखा है। जिसके प्रमाणयहां मनाये जाने वाले त्योहार बूढ़ी दीवाली, माघी व खोडा तथा अप्रैलव अगस्त माह में विशु व हरियालटी मेलों में देखने को मिलते हंै।जहां इन मेलों में परम्परागत कुश्तियां व थोड़ाटी (ठोड़ा) नृत्य कीझलक देखने को मिलती है तो वहीं आपसी मेलजोल, भाईचारे को भीबढ़ावा मिलता है। यही नहीं तीज-त्योहारों के दौरान पकने वालेपारम्परिक पकवान तेल पकी (उडद से भरी रोटी), सिडकू, शाकुली,चिडवा, मूडा, सतौले (असकली), पटवांडे इत्यादि आज भी बडे चाव केसाथ पकाए व खाए जाते हैं। इस क्षेत्र में आज भी बहुपति प्रथा देखनेको मिल जाती है। इस संबंध में जानकारों का कहना है कि क्षेत्र कीकठिन भोगौलिक परिस्थितियां व कमजोर आर्थिक स्थिति के चलतेयह प्रथा प्रचलित हुई थी, परन्तु बदलते परिवेश के साथ-2 यह प्रथाभी लगभग 90 फीसदी तक खत्म हो चुकी है। जिसका श्रेय क्षेत्र केलोगों में बढ़ता शिक्षा का प्रचार प्रसार व बेहतर होती आर्थिकी कोजाता है। आज गिरिपार क्षेत्र के राजगढ़, संगडाह, शिलाई वहरिपुरधार में सरकारी कॉलेज खुले हैं, जिससे जहां क्षेत्र के युवाआें कोघर के नजदीक ही उच्च शिक्षा हासिल करने के अवसर प्राप्त हुए हैं तोवहीं उच्च शिक्षा के माध्यम से आगे बढऩे के नए-नए सुअवसर भीमिल रहे हैं। यही नहीं आज भले ही भारतीय समाज में आधुनिकता केप्रभाव से संयुक्त परिवार तेजी से विघटित हुए हैं, परन्तु इस क्षेत्र मेंआज भी 40/50 लोगों का संयुक्त परिवार देखने को मिल जाते हैं।
यहां के लोगों का प्रमुख व्यवसाय खेती-बाडी है। जिसमें अदरक,मक्की व गेंहू यहां की मुख्य फसलें हैं परन्तु अब टमाटर, मटर,लहुसन, आलू इत्यादि की खेती भी लोगों ने अपना ली है। गांव-गांवपहुंचती बिजली, पानी व सडक़ें तथा खेती बाडी की आधुनिकतकनीकों के इस्तेमाल के साथ-साथ अब लोग पॉलीहाउस लगाकरव्यावसायिक खेती को अपनाकर अपनी आर्थिकी को ज्यादा मजबूतकर रहे हैं। जिसमें गिरिपार का राजगढ़ क्षेत्र पॉलीहाउस के माध्यम सेफूलों की खेती व बागवानी के तहत आडू की पैदावार के लिये पूरे प्रदेशमें ही नहीं देश में अग्रणी बन गया है।
एेसे में सिरमौर जिला का यह गिरिपार क्षेत्र (हाटी समुदाय) विकटपरिस्थितियों के वाबजूद भी जहां अपनी संस्कृति व परम्पराआें कोसंजोए है तो वहीं शिक्षित होकर तेजी से आगे बढ़ रहा है।
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